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नाटक

पुनर्जनन

डॉ. भारत खुशालानी


पर्दा खुलता है.

३५ वर्ष की आयुका व्यक्ति अपना सामान बाँधकर दूसरे घर में जाने की तैयारी में दिखता है.

मंचके एक ओर से अधेड़ उम्र का व्यक्ति प्रवेश करता है.

अधेड़ व्यक्ति:(ख़ुशी से)नमस्कार,मिश्रा साहब.

मिश्रा(सामान बाँधने वाला व्यक्ति): अरे नमस्कार, नमस्कार कोठारी जी. आइये.

कोठारी: तुम तो बिलकुल समय नहीं बर्बाद करते हो यार !

मिश्रा: समय का पूरा सदुपयोग करने की कोशिश करते हैं.

कोठारी: कुछ मदद चाहिए ?

मिश्रा: बिलकुल. ये बड़ा बक्सा उठाकर बाहर वरांडे में रखना है.

दोनोंबड़ा बक्सा उठाकर मंच केभीतर जाकर रखकर आते हैं. मंच थोडा खाली हो जाताहै. मंच पर अभी भी सोफा और सोफे-वाली कुर्सियां पड़ी हैं.

इतने में एक और अधेड़ उम्रका व्यक्ति प्रवेश करता है.

कोठारी: लो, जगजीवन भाई भी आ गए.

जगजीवन: यार तुम तो बिना बताए ही जाने की फिराक में थे !

तकरीबन४०-५० वर्ष की उम्र की एक महिला भी जगजीवन के साथ प्रवेश करती है.

कोठारी: संध्या जी भी आई हैं.

संध्या: नमस्कार कोठारी जी.

कोठारी: नमस्कार संध्या जी.

जगजीवन: हम दोनों खाना लाये हैं अपने साथ.

जगजीवन और संध्या अपने४ पुडों वाले खाने के डिब्बे दिखाते हैं.

संध्या(मिश्रा से): आप इतना जल्दी क्यों घर बदल रहे हो ? २ दिन पहले ही तो आपने इस्तीफा दिया है.

कोठारी: जरूर कोई बड़ी पोस्ट मिली होगी. किसी कॉलेज में प्रिंसिपल की पोस्ट मिली होगी ! बता भी दो यार !

मिश्रा: काश ऐसा होता.

जगजीवन: खाने को यहाँ रख देते हैं.

दोनों जगजीवन और संध्या, खाने के डिब्बों को एक कोने में रख देते हैं.

जगजीवन: अगर थोडा समय होता, तोअपनी बीवी को बोलकर मालपुए बनवा कर लाता. बहुत अच्छे मालपुए बनाती है वो.

संध्या: या तो बाहर जाकर किसी अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खा सकते थे.

कोठारी (मिश्रा की तरफ इशारा करते हुए): पर ये तो भागने के चक्कर में हैं. इन्होने समय ही कहाँ दिया हमको.

मिश्रा: घर का खाना ही ठीक है.

कोठारी: धनपत भी आता ही होगा. अपने विद्यार्थी से बात कर रहा था.

एक और महिला प्रवेश करती है.

संध्या: अग्रवाल मैडम आ गई.

अग्रवाल: प्रणाम मिश्रा जी.

मिश्रा: प्रणाम, प्रणाम. आइये.

अग्रवाल: सब तैयारियाँ हो गई ?

मिश्रा: बस थोडाबहुत बचा है.

अग्रवाल: आपके बदले किसको रखेंगे, कुछ बताया प्रिंसिपल साहब ने ?

संध्या: अभी तक तो कुछ पता नहीं है.

अग्रवाल की नज़र एक पेंटिंग पर पड़ती है.

अग्रवाल: क्यासुन्दर पेंटिंग है !

जगजीवन: ये तो नारायण की पेंटिंगलगती है.

संध्या: सच में नारायण की है ?

अग्रवाल:नारायण की असलीपेंटिंगहै ?

कोठारी: तुमने खरीदी है ?

मिश्रा:नहीं. किसी ने भेंट दी है.

अग्रवाल: दिखने में तो बिलकुल वास्तविक लगती है.

अग्रवाल पेंटिंग के पास जाकर उसे उठाती है और गौर से देखती है.

अग्रवाल: ५० साल पहले के पेंटर ऐसा कैनवस इस्तेमाल करते थे.

संध्या: पीछेनारायण की साइन भी है.

अग्रवालपीछे देखतीहै.

अग्रवाल: बिलकुल असली साइन है.इसमेंकुछ लिखा भी है. "मेरे प्रिय मित्र रामदास के लिए."

संध्या: बहुत भाग्यशाली होगा रामदास.

कोठारी: रामदास ने मिश्रा को दी होगी.

अग्रवाल (मिश्रा से): किसी अच्छे आर्ट डीलर को दिखाकर इसकी कीमत निकलवा लो. मेरे ख्याल से तो ये पेंटिंगबहुमूल्य है.

मिश्रा: देखेंगे.

संध्या: नारायण की हर पेंटिंग आजकल बहुमूल्य है.

मिश्रा पेंटिंग को अग्रवाल के हाथों से लेकर वापिस उसी जगह रख देता है.

मिश्रा: मुझे इसकी कोई कीमत नहीं चाहिए.

जगजीवन: सोफा भी ले जा रहे हो ?

मिश्रा: हाँ. ट्रकवाले कोबुलाया है. वो ही आकर अपनी ट्रक में डाल देते हैं.

कोठारी: सोफा नहीं भी होता तो हम ज़मीन पर बैठ जाते. मुझे कोई दिक्कत नहीं है.

जगजीवन (मिश्रा से): अगर अभी टीचिंग लाइन जारी नहीं रखी तो सर्विस में ब्रेक आ जाएगा.

कोठारी: सब कुछ बहुत अचानक कर रहे हो तुम.

जगजीवन: कुछ तो बात होगी.

संध्या: कोई प्रॉब्लम तो नहीं है ना?

मिश्रा: नहीं.

जगजीवन: हम कोई मदद कर सकते हैं तो बता देना.

मिश्रा: बिलकुल.पर कोई समस्या नहीं है.

कोठारी: तुम जा कहाँ रहे हो ?

अग्रवाल: दस साल शिक्षक रहकर आदमी और कहाँ जायेगा !

कोठारी: यहीं पर प्रिंसिपल बनने का अच्छा मौका था.

जगजीवन: इतने सालों के बाद तुम्हारे पैर में अचानक ये क्या खुजली हो गई ?

मिश्रा: मैं पहले भी ऐसा कर चुका हूँ. मेरे लिए यह कोई नयी बात नहीं है.

जगजीवन: ऐसा कैसे हो सकता है ? तुम तो अभी जवान हो.

संध्या: पिछले दस सालों में मिश्रा जी बिलकुल नहीं बदले हैं. आज भी वैसे ही दिखते हैं.

अग्रवाल:हर महिला को इसका राज़ चाहिए !

कोठारी तबतक एक धनुष-बाण उठाकर देख रहा है.

कोठारी: इसकी कमान को खींच सकतेहैं क्या ?

धनुष-बाण थोड़े अजीब प्रकार का है और बहुत पुराना दिखता है. कोठारी उसको खींचने की कोशिश करता है.

संध्या: आपको तीरंदाजी का भी शौक है ? ये तो हमको मालूम ही नहीं था.

मिश्रा: मैं इसको शिकार पर लेकर गया था ?

अग्रवाल: शिकार पर ?? यहाँ कहाँ शिकार आ गया ?!

मिश्रा: हम लोग जंगल गए थे. वहीँ छोटे-मोटे शिकारके लिए.

कोठारी: धनुष-बाण से शिकार ?! आजकल तो लोग बन्दूक से शिकार करते हैं.

जगजीवन: शिकार करने पर पाबंदी लग गई है.

कोठारी धनुष-बाण रख देता है.

एक और व्यक्ति प्रवेश करता है. उसके साथ २२-२३ वर्ष की उम्र की एक युवती है.

जगजीवन: नमस्कार चिंतामणि साहब.

चिंतामणि: नमस्कार!

चिंतामणि युवती की तरफ इशारा करता है.

चिंतामणि: यह नैना है. मेरे साथ शोधकार्य कर रही है.

मिश्रा: मेरी क्लास में भी थी.

नैना हंसकर नमस्कार करती है.

चिंतामणि: इसकोभी आकर आपको विदाई देनी थी.

मिश्रा (नैनासे): ज्यादा काम तो नहीं करवा रहे हैं चिंतामणि साहब ?

नैना हंसती है.

नैना: नहीं. वैसे भी पुरातत्व एक कठिन विषय है.

मिश्रा: चिंतामणि एक बहुत अच्छा शिक्षक है.

चिंतामणि(मिश्रा से): तुम्हारे लिए एक किताब लाया हूँ.

चिंतामणि मिश्रा को किताब देता है.

मिश्रा(चिंतामणि से): यह तो तुम्हारी ही लिखी हुई है.

मिश्रा किताब का शीर्षक पढता है.

मिश्रा: "पुरातत्वविद्या."

चिंतामणि: अभी अभी प्रकाशक के पास से उठाकर लाया हूँ.

जगजीवन: क्या बात है ! किताब छपवा ली तुमने ?

चिंतामणि: इसके नंबर मिलते हैं.

मिश्रा: मैं तो किताब लिखने से ज्यादा किताब पढने में विश्वास रखता हूँ.

मिश्रा किताब को रख देता है.

चिंतामणि: तो मिश्रा जी, आपने बताया नहीं कि आप कहाँ जा रहे हैं.

जगजीवन: हमने पहले ही पूछ लिया है.

कोठारी: मिश्रा जी के पैरों में अचानक खुजली हो गई है.

संध्या: उनको यहाँ से भागना है.

चिंतामणि: खुजली का मलहम मिलता है.

मिश्रा नीचे की ओर देखता है.

अग्रवाल: कोई तो समस्या है.

मिश्रा: कोई समस्या नहीं है. कुछ-कुछ सालों में सब बदलते रहना चाहिए.

संध्या: सभी लोग ऐसा नहीं सोचते हैं.

मिश्रा: मेरा तो यही उसूल है.

अग्रवाल: अगर आप शादीशुदा होते तो आपकी बीवी कभी ऐसा नहीं करने देती.

मिश्रा: भगवान् का शुक्र है कि मैं शादीशुदानहीं हूँ.

कोठारी: तुमको अपने पैरों की खुजली पसंद है, लेकिन एक जगह पर स्थाई जिब्दगी पसंद नहीं ?

मिश्रा: आज सब आखरी खाना खायेंगे.

संध्या: वो भी घर का.

मिश्रा: लेकिन सब थाली-कटोरे-चम्मच पैक हो गए हैं बक्सों में. ट्रकवाले ने कहा था कि सब बक्सों में पैक करकेरखना है. फिर वे आकर बक्से और बाकी का भारी सामान ट्रक मेंडाल देंगे.

जगजीवन: कोई बात नहीं. आज डब्बों में से ही खा लेंगे.

अग्रवाल: कॉलेज में और क्या करते हैं !

मिश्रा: अभी भी बहुत सामान बिखरा पड़ा है. उसको पैक करना है.

चिंतामणि: आपके जाने से दुःख हो रहा है. दल सालों तक अच्छी कटी.

नैना: आपकोछात्रों की तरफ से विदाई देनीथी.

चिंतामणि: हाँ, एक विदाई समारोह आयोजित कर सकते थे.

अग्रवाल: आपने कोई मौका ही नहीं दिया.

जगजीवन की नज़र एक चमकीले पत्थर की तरफ जाती है. पत्थर हथेली से थोडाछोटा है. जगजीवन पत्थर हाथ में उठा लेता है.पत्थर नुकीला है.

जगजीवन: ये क्या है ?

कोठारी: नुकीला पत्थर है. ज़मीन में गड्ढा खोदने के काम में आताहै.

चिंतामणि: पुरातन काल में ऐसा ही पत्थर औजार के रूप में इस्तेमाल होता था.

नैना: पुरातन काल में ऐसा ही औजार लकड़ी और हड्डियों को तराशने के लिए इस्तेमाल में आता था.

संध्या: लकड़ियों और हड्डियों को तराशने के लिए ?

नैना: लकड़ी को तराशकर उसका भाला बनाते थे.हड्डियों को तराशकर बर्छी बनाते थे.

अग्रवाल: लेकिन ये हिन्दुस्तान का तो नहीं हो सकता है.

जगजीवन: ये हिन्दुस्तान का क्यों नहीं हो सकता है ?

अग्रवाल: क्योंकि हिन्दुस्तान में जो सबसे पुरानी सभ्यता थी वह हड़प्पा और मोहेंजो-दरो वाली सभ्यता थी और उसमें भी ऐसे औज़ार इस्तेमाल नहीं होते थे.

नैना: ऐसे औज़ार उससे भीहज़ारों सालपहलेआदिमानव शिकार करने के लिए इस्तेमाल करते थे.

चिंतामणि: ऐसे औज़ार यूरोप के आदिमानव इस्तेमाल करते थे.

संध्या (मिश्रा से): आपको यह कहाँ से मिल गया ?

मिश्रा पत्थर को देखता है.

कोठारी: काश अगर हर पत्थर अपनी कहानी बता सकता !

मिश्रा:अच्छा हो गया आप सब लोग आ गए.

संध्या: ऐसे ही थोड़ी भाग जाने देते आपको.

जगजीवन: यार बात क्या है, बड़े उदास नज़र आ रहे हो तुम.

कोठारी: कुछ तो बताओ.

चिंतामणि: इतने साल की दोस्ती है.

अग्रवाल: हमको अपना ही समझो.

जगजीवन:CBI पीछे पड़ी है क्या ?

संध्या: टैक्स वाले तो पीछे पड ही नहीं सकते. सब पहले ही कट जाता है.

मिश्रा: छोडो यार.

कोठारी: तुम खुद ही एक रहस्य पैदा कर रहे हो.

जगजीवन: शायद मिश्रा जी कुछ कहना चाहते हैं. लेकिननिर्णय नहीं ले पा रहे हैं कि कहना चाहिए या नहीं.

मिश्रा: शायद.

कोठारी: तो फिर बोल दो.

मिश्रा: मुझे बताने में कोई दिक्कत नहीं है.

अग्रवाल: होनी भी नहीं चाहिए. हम सब अपने ही हैं.

मिश्रा: जब-जब मैं ऐसे पहले छोड़कर गया हूँ, मैंने पहले कभी किसी को नहीं बताया है.इसीलिए मुझे मालूम नहीं कि आप लोग क्या सोचोगे.

अग्रवाल: कुछ नहीं सोचेंगे हम लोग.

मिश्रा: मैं एक प्रश्न पूछता हूँ आप लोगों से. आप लोगों को शायद हास्यास्पदलगे.

अग्रवाल: नहींलगेगा.

चिंतामणि: हम लोग शिक्षक हैं. पूरा समय विधार्थी हमसे हास्यास्पदप्रश्न पूछते ही रहते हैं.

चिंतामणि नैना की तरफ देखता है. नैना सिर्फ मुस्कुराकर हामी भरती है.

मिश्रा: मेरा प्रश्न यह है: अगर दस हज़ारसाल पुराना आदिमानव किसी प्रकार से आज तक जिंदा रहा ...

अग्रवाल: ऐसा कैसे हो सकता है ?

कोठारी: आज तक वो कैसे जीवित बचारह सकता है ?

जगजीवन: ज्यादा से ज्यादा वो सौ साल जिया होगा, उसके बाद मर गया होगा.

मिश्रा: अगर वो कभी मरा ही नहीं और आज भी जिंदा है, तोवो कैसा होगा ?

चिंतामणि: प्रश्न तो बहुत अच्छा है.

संध्या: कोई कहानी लिखने वाले हो क्या आप ?

मिश्रा: यही समझ लो. तो वो आदिमानव जो मरा नहीं, वो कैसा होगा ?

कोठारी: बहुत थका हुआ !

नैना हंसती है.

जगजीवन: दरअसल, यह सोचने वाला प्रश्न है. अगर वो इतने साल तक जीवित रह पाया है, तो आज भी हमारे जैसा ही होगा.

अग्रवाल: आदिमानव हमारे जैसा होगा ? गुफाओं में रहनेवाला आदिमानव ?

नैना: शरीर रचना के हिसाब से उसमें और हममे कोई फरक नहीं रहेगा.

चिंतामणि: शायद आज के इंसान की ऊंचाई आदिकाल के मानव से थोड़ीसी ज्यादा है.

नैना: थोड़ीसी ज्यादा ऊंचाई का क्या फायदा हो सकता है ?

चिंतामणि: ज्यादा ऊंचाई रहने से दूर से आते हुआ कोई भी जानवर या प्राणी ज्यादा आसानी से नज़र आ सकता है.

नैना: मैंनेपढ़ा है कि जो ज्यादा ऊंचाई वाले और पतले लोग रहते हैं, उनके शरीर गरम मौसम कोअच्छी तरह से झेल पाते हैं.

जगजीवन: दस-बारह हज़ार साल जीवित रहने वाला व्यक्ति हर सदी से गुज़रा होगा. और हर सदी में उसमे परिवर्तन आया होगा.

कोठारी: उसकी बुद्धि में विकास कैसे हुआ होगा ?

जगजीवन: सामान्य तरीके से.

नैना: आदिमानव अक्लमंद लोग थे. उनमें बुद्धि होती थी.

चिंतामणि: सिर्फ यही बात थी कि उनके पास उतना ज्ञान नहीं था जितना हमारे पास है.

जगजीवन: जैसे-जैसे पूरी मानवजाति ने सीखना शुरू किया, वैसे-वैसे ही उस आदिमानव ने भी सीखा होगा.

नैना: अगर वो जिज्ञासु प्रकार का आदिमानव है, तो आज उसका ज्ञान बहुत भयंकर होगा.

संध्या: अगर आपकी यह कहानी ख़त्म हो जाए, तो मुझे एक प्रति जरूर भेजना. मुझे बहुत रुचि है इसमें.

कोठारी: लेकिन प्रश्न यह है कि वो इतने साल जिंदा कैसे बचपायेगा?

अग्रवाल: बिलकुल बराबर. कौन-सी ऐसी चीज़ है जो उसको जिंदारख पाएगी ?

चिंतामणि: पुनर्जनन.

अग्रवाल: पुनर्जनम? लेकिन इसके लिए तो उसको मरना पड़ेगा.

चिंतामणि: पुनर्जनम नहीं, पुनर्जनन. पुनर्जननमतलब हमारे शरीर के जो अंग रहते हैं, वो पुराने जीर्ण-शीर्ण न होकर, फिरसे पैदा होते रहें. अगर ऐसा होते रहा, तोआदमी जिंदा रहेगा, मरेगा नहीं.

नैना: हाँ. खासकर जो शरीर के सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण अंग हैं - ह्रदय, गुर्दा, जिगर वगैरह.

चिंतामणि: हमारा शरीर जिस प्रकार से अभी है, उस प्रकार से वो दो सौ साल जीवित रह सकता है.

कोठारी: हमलोगों का खान-पान ही ऐसा है कि हम दो-सौ सालों तक जीवित नहींरह सकते हैं.

जगजीवन: हम लोग जो कुछ भी खाते हैं, सबधीमा ज़हर है.

मिश्रा: या तो ऐसा हो सकता है, कि उस आदिमानव ने ऐसा कुछ किया हो जो बाकी के आदिमानव और उसके बाद आने वाले मानवों ने नहीं किया हो. इससे वो इतने साल जीवित रह पाया हो.

संध्या: उसने भी तो वही सब खाया होगा जो बाकियों ने खाया है. वही पानी पिया होगा. उसी हवा में सांस ली होगी. सबकीपरिस्थितियाँ बराबर ही थी.

जगजीवन: आधुनिक ज़माने के पहले, खाना-पीना और हवाएकदम शुद्ध थे.

कोठारी: हम लोगों ने चिकित्सा विज्ञान में तरक्की करके अपनी उम्र बढाई है.

जगजीवन: उम्र बढ़ाकर हम उस दुनिया में रह रहे हैं, जो रहने लायक नहीं है.

संध्या: जो कचरा हम शरीर के अन्दर जमा करते हैं, उससे धीरे-धीरे हमारी उम्र ख़त्म होते जाती है. इसीलिए अगर उस आदिमानव का शरीर ऐसा हो किउसमें कचरा जमा ही न हो ...

अग्रवाल: अगर पूरा कचरा बाहर निकलता रहे, तो शायद वो जीवित रह सकता है.

संध्या: अगर कचरा जमा नहीं होगा, तो शरीर सड़कर नष्ट नहीं होगा.

कोठारी: कचरानहीं जमा होने का राज़ तो सभी को चाहिए.

मिश्रा: मुझे नहीं लगता कि सभी को चाहिए.

कोठारी: क्यों? सभी को क्यों नहीं चाहिए ऐसा राज़ ?

मिश्रा: दस-बारह हज़ार साल जिंदा कौन रहना चाहता है ?

चिंतामणि: अगर मैं स्वस्थ रहूँ और मेरी उम्र भी नहीं बढ़े, तो क्यों नहीं ?

नैना: कितना बढ़िया मौका मिलेगा सब ज्ञान हासिल करने का.

जगजीवन: अगर थोडा गौर से सोचा जाए, तो ऐसा बिलकुल संभव है.

कोठारी: ज्यादा असंभव नहीं है.

मिश्रा: मुझे आर्यों के साथ घुड़सवारी करने का मौका मिला था. लेकिनमुझे रुचि नहीं थी.

बाकी लोग मिश्राकी तरफ आश्चर्य से देखते हैं.

अग्रवाल: कौनसे आर्य ?

कोठारी: वही आर्य जाति वाले आर्य जो हज़ारों साल पहले हिन्दुस्तान में थे या तुम्हारे कोई पहचान वाले आर्य हैं ?

जगजीवन: किस बारे में बात कर रहे हैं हम लोग ?

अग्रवाल: हम लोग उस गुफावासी आदिमानव के बारे में बात कर रहे हैं, जो किसी तरह आज तक जीवित रह गया है.

मिश्रा: क्या बढ़िया मौका सीखने का, अगर एक बार सीखने की कला आ जाए.

सभी लोग मिश्रा को ऐसे देखते हैं जैसे कोई पागल व्यक्ति हो.

मिश्रा हँसता है.

मिश्रा: मान लो कि वो कहानी है जो मैं लिख रहा हूँ.

जगजीवन(राहत की सांस लेते हुए): फिर ठीक है.

कोठारी: मुझे लगा कि तुम अपनी उम्र बता रहे हो - दस हज़ार साल !

संध्या: मिश्रा जी की उम्र हज़ार साल से ऊपर तो बिलकुल नहीं है !

सब हँसते हैं.

मिश्रा: हरदस सालों में, जब मेरे आस-पास के लोगों को यह पता चल जाता है की मेरी उम्र बिलकुल नहीं बढ़ी हैपिछले दस सालों में, तब मैं अपना सामान बाँध लेता हूँ कहीं और जाने के लिए.

मंच पर एक बार फिर चुप्पी छा जाती है. सब लोग मिश्रा की ओर देखते हैं.

फिर संध्या चुप्पी को तोडती है.

संध्या: अब तोवह कहानी मुझे पढ़नी ही है.जब लिखकर पूरी हो जाए तो मुझे जरूर भेजना.

कोठारी: आगे और भी कुछ तुम अभी ही बताना चाहते हो ?

जगजीवन: तुमको लगता है कि तुम एक आदिमानव हो.

मिश्रा: नहीं. जब मैं आदिमानव था, तो मेरी उम्र बराबर ढंग से पैंतीस तक पहुँच गई.आजमैं मानव हूँ, और मेरी उम्र पैंतीस है.पिछले दस वर्षों में मेरी उम्र पैतीस ही रही.

कोठारी: तुम्हारेपास जितना वक़्त बचा है, वो तुम हमसे मज़ाक करने में गुजार दोगे.

अग्रवाल: वो अपनी कहानी बता रहे हैं.

चिंतामणि: पर ये बात सही है कि दससाल पहले जैसा मैंने मिश्रा जी को देखा था, आज भी वो बिलकुल वैसे ही हैं.

मिश्रा: मेरे अन्दर ऐसी कुछ काबिलियत थी कि आदिमानवों ने मुझे अपनानेता रख लिया.

अग्रवाल: रख लिया या चुन लिया ?

मिश्रा: कुछसालों के बाद जब उनकी उम्र बढ़ने लगी, और मेरी उम्र वहीँ की वहीँ रही, तो उनको मुझसे डर लगने लगा.उन्होंने मुझे मारकर भगा दिया.

अग्रवाल: उस समय कैसे मारते थे लोग ?

मिश्रा: उनआदिमानवों को लगा कि मैं उनकी जिंदगी लेकर अपनी जिंदगी में जोड़ते जा रहा हूँ.

संध्या: विक्रम-वेताल में कभी न मरनेवाले दैत्य की कहानी है.

नैना: मिश्रा सर दैत्य नहीं हैं.

चिंतामणि: विक्रमवेताल काल्पनिक कहानियां हैं.

जगजीवन:बहुत लोगों को अपना बचपन याद नहीं रहता है. लेकिन तुमको दस हज़ार साल पहले का अपना बचपन कैसे याद है ?

मिश्रा: वो मेरा बचपन नहीं था. उस समय मैं ३५ साल का था.जिंदगी की अच्छी और बुरी यादें, महत्वपूर्ण घटनाएं, सब याद हैं.वो दिमाग में बैठ जाती हैं.

कोठारी: लेकिन ज्यादा उम्र होने पर वो दिमाग से निकल भी जाती हैं.

मिश्रा: जब बाकी आदिमानवों ने देखा की न मेरी मृत्यु हो रही है, न ही उम्र बढ़ रही है, तो वो मुझे मारने केलिए दौड़ने लगे.

संध्या:सब आदिमानव एक साथ मिलकर रहते थे ?

मिश्रा: नहीं. उनके भी गुट थे. मैं एक गुट से बचने केलिए हर ८-१० सालों में दूसरे गुट में शामिल हो जाता था.

संध्या: सब पास-पास में रहते थे ?

मिश्रा: नहीं. कुछ गुट थोड़ी थोड़ी दूरी पर रहते थे जैसे नज़दीक के गाँव. और कुछ गुटों का समूह शहरों जितनी दूरी पर रहता था.

नैना: उस समय दूरसंचार सेवा नहीं थी. आसपास के गुटों को पता नहीं चलता था कि दूसरे गुटों में क्या चल रहा है.

मिश्रा: कुछ दशकों के बाद मैं काफी पैदल चलकर दूसरे शहर- दूसरे गुटों के समूह में - पहुँच जाता था.

नैना: तब शिकार पर खाना निर्भर था.

मिश्रा: बिलकुल. हम लोग जानवरों का शिकार करके अपना पेट भरते थे और मौसम देखकर पलायन करते थे.

अग्रवाल: बंजारों की तरह.

मिश्रा: मेरे पहले दो हज़ार साल ठंड में बीते.फिर हमको धीरे धीरे यह समझ में आनेलगा कि जितना नीचे हम जायेंगे उतना तापमान बढ़ेगा.

अग्रवाल: नीचे आने से तापमान बढ़ता है.

मिश्रा: इसीलिए हम लोग धीरे धीरे हिन्दुस्तान की तरफ आने लगे.

कोठारी:बीच रास्ते में किस प्रकार का इलाका पड़ता था?

मिश्रा: पर्वत ही पर्वत थे.पर्वतों के बाद खाली सपाट ज़मीन.

नैना: हिमालय पर्वतों में भी ऐसा ही है. पर्वतों के बाद सपाट ज़मीन.

जगजीवन: तुम जो कुछ भी कह रहे हो, सब सही लग रहा है.

चिंतामणि: हर पाठ्यक्रम वाली पुस्तक में है ये सब. मिश्राजी वो कहानी बन रहे हैं जो उनको अपने खाली समय में लिखनी है.

संध्या: खाली समय में कहानी लिखने के लिए कोई अपनी इतनी अच्छी पोस्ट से इस्तीफा थोड़े ही दे देता है.

अग्रवाल: कोई और वजह होगी जो मिश्राजी हमको नहीं बतानाचाहते हैं.

मिश्रा: एक तरफ पाठ्यक्रमों में आधुनिक निष्कर्ष हैं. और एक तरफ जो मैंने देखा, खुद महसूस किया है, वो यादें हैं. दोनों को एकीकृत करना है.

अग्रवाल: अगर आप वाकई में गुफामानवहैं, तो आपका वो बड़ा मोटा डंडे जैसा हथियार कहाँ पर है जो सब गुफामानावों के पास रहताथा ?

नैना: वो उस समय का हथियार था. आज का नहीं.

अग्रवाल: लेकिन उस ज़माने का पत्थर वाला औज़ार तो यहीं पर है.

अग्रवाल चमकीले नुकीले पत्थर की तरफ इशारा करती है.

कोठारी: तो वो डंडे वाला हथियार भी यहीं होगा. पैक कर दिया होगा.

जगजीवन: तुम पुनर्जनम की तो बात नहीं कर रहे हो ?

संध्या: वो शायद पुनर्जनम की बात नहीं कर रहे हैं.

जगजीवन:तुम ऐसा तो नहीं बोल रहे होकि तुमको तुम्हारे पिछले २०० जनम याद हैं ?

मिश्रा: नहीं. एक ही जनम.

चिंतामणि: २०० जनम कैसे कह दिया आपने ?

जगजीवन: १०० वर्ष के १०० जनम से दस हज़ार साल बनते हैं.

संध्या: बराबर. क्योंकि सौ गुणा सौ, दस हज़ार होता है.

चिंतामणि: अच्छा! इसीलिए अगर औसतन५० वर्षों का एक जनम ले लो तो दस हज़ार सालों में दो सौ जनम हो जायेंगे.

जगजीवन: तो दो सौ मरकर फिर जनम लेना और उन सब जन्मों को याद रखना ...

मिश्रा: नहीं, पूरे दस हज़ार सालों का एक ही जनम.

संध्या: और उसी एक जनम में सिर्फ पैंतीस की उम्र.

अग्रवाल: बहुत अद्भुत जनमहोगा वो एक जनम.

जगजीवन: इस हिसाब से तो पुनर्जनम भी होना चाहिए. पुनर्जनम के माध्यम से इंसानवापिस आ आकर सब कुछ फिर से सीखेंगे.

कोठारी: हो सकताहै कि ऐसा ही हो रहा हो.

चिंतामणि: इंसान वापिस आ आकर हर बार उस नए युग का ज्ञान प्राप्त करके मर जाते होंगे और फिर दोबारा जन्मलेकर नए सिरे से नए युग का ज्ञान प्राप्त करते होंगे.

नैना: लेकिन मिश्रा सर तो बाकीके इंसानी रूपों से बचकर निकल गए और एक ही रूप कायम किया हुआ है पिछले दस हज़ार सालों में.

मिश्रा: पिछले दस हज़ार सालों में एक ही इंसानी रूप.

अचानक दो हट्टे कट्टे आदमी अन्दर आते हैं.

पहला हट्टा-कट्टा आदमी: मिश्रा जी, सामान पूरा पैक है न ? ट्रक ला ली है हमने.

दूसरा हट्टा-कट्टा आदमी: ट्रक बाहर खड़ी है. और क्या ले जाना है ?

मिश्रा: ये सोफा और यहाँ का थोडा बहुत बचा खुचा सामान.

अग्रवाल फिर उस पेंटिंग को हाथ में लेती है.

अग्रवाल: मुझेपहले ही विश्वास था कि यह पेंटिंग असली है. और जिस 'रामदास' को नारायण ने अपनी पेंटिंग दी थी, वो रामदास आपका कौन लगता है ?

जगजीवन:पेंटिंग नारायण ने मिश्रा जी को ही दी थी. मिश्रा जी ही रामदास हैं.

चिंतामणि(चमकीले नुकीले पत्थर को देखते हुए): मुझे भी पहले ही शक आ गया था कि यह पत्थर असली है.

संध्या: सच बताइये मिश्रा जी, कोई और वजह तो नहीं है आपके अचानक इस्तीफा देकर इतनी बढ़िया नौकरी छोड़कर जाने का ?

मिश्रा: नहीं.

हट्टे-कट्टे आदमी सोफा उठाकर बाहर जाने लगते हैं.

पर्दा गिरता है.


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